देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जाएँगी लाशें
ढूँडोगे तो इस शहर में क़ातिल न मिलेगा
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
बशीर बद्र
कहां तो यह तय था चिराग़ां हर एक घर के लिए
कहां चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
दुष्यंत कुमार
कच्चे मकान जिनके जले थे फ़साद में
अफ़सोस उनका नाम ही बलवाइयों में था
नईम जज़्बी
घरों पर नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
बशीर बद्र
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
मुनव्वर राना
इश्क़ में भी सियासतें निकलीं
क़ुर्बतों में भी फ़ासला निकला
रसा चुग़ताई
इस बरस हमने ज़मीनों में धुंआ बोया है
फल नहीं आएंगे अब, शाख़ों पे बम आएंगे
राहत इंदौरी
मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं
बशीर बद्र
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
राहत इंदौरी
हुकूमत से एजाज़ अगर चाहते हो
अंधेरा है लेकिन लिखो रोशनी है
अशरफ़ मालवी
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मैं तो बस अपनी पहचान ढूंढती हूँ ..
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