देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
मजरूह सुल्तानपुरी की ये गज़ल बहुत कुछ कहती है. लेकिन इससे भी ज्यादा कहती है उस शक्स की कहानी जिसने बिना पैरों के पैरालिम्पिक्स खेलों में 20 से अधिक गोल्ड मेडल जीते.
मार्टिन लूथर किंग ने एक बात कही थी. “अगर तुम उड़ नहीं सकते तो, दौड़ो! अगर तुम दौड़ नहीं सकते तो, चलो और अगर तुम चल नहीं सकते तो, रेंगो” बात में भारी वजन है, शायद अच्छे से समझ ना आए. इसको समझाने का सबसे आसान तरीका है “ब्लेड रनर”. ये कोई फार्मूला नहीं है. ये एक इंसान है जिसने गोल्ड मेडल अपने पैरों से नहीं बल्की अपने हौसलों से जीती है.
असली नाम है ऑस्कर पिस्टोरियस. जिसके “ब्लेड रनर” बनने की कहानी आपको वो सब समझा देगी जो आप समझाना चाहते हैं. ऑस्कर पिस्टोरियस का जन्म 22 नवंबर 1986 में साउथ अफ्रिका में हुआ. जब वो पैदा हुए तो वह भी किसी आम बच्चे की तरह थे लेकिन महज 11 महीने के बाद वो बिमार हो गए. बिमारी भी ऐसी हुई की उन्होने अपने दोनों पैर खो दिए.
ऑस्कर जैसे-जैसे बड़े होते गए उनकी माँ को उनकी चिंता भी उतनी ही बड़ी होने लगी. ऑस्कर जब 8 साल के थे उन्होंने अपनी मां से एक सवाल पूछा. सवाल सुन मां रोने लगी. ऑस्कर ने मां से पूछा था कि वो दूसरे बच्चों की तरह क्यों नहीं दौड़ सकते. उनके पास पैर क्यों नहीं हैं? माँ भला क्या कहती. लेकिन ऑस्कर की मां को विश्वास था कि भले ही उनका बेटा अपंग है, मगर एक दिन वह अपना नाम जरूर ऊंचा करेगा.
एक दिन ऑस्कर ने अपनी मां से कहा कि वो एक खिलाड़ी बनना चाहते है. मां ने जब सुना तो खूब रोई लेकिन इस बार उन्होंने जो कहा उससे ऑस्कर की जिंदगी बदल गई. उनकी माँ ने ऑस्कर के नकली टाँगे लगावाई और कहा अब तुम सारे खेल आसानी से खेल सकते हो. ऑस्कर की मां ने ऑस्कर को खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित भी करने लगी.
सबकुछ सही चल रहा था. ऑस्कर अपनी जिंदगी में खुश रहने लगे थे. लेकिन अचानक एक दिन सब खत्म हो गया. ऑस्कर से अटूट प्रेम करने वाली उनकी मां दुनिया छोड़ कर चली गई. उस दिन सिर्फ उनकी मां उन्हें छोड़ कर नहीं गई साथ ही ऑस्कर के होंसलों को साथ ले गई. उस वक्त ऑस्कर 15 साल के थे.
माँ के जाने के बाद कुछ समय तक तो ऑस्कर गम में डूबे रहे, मगर उसके बाद उन्होंने खुद को संभाला. उनकी माँ चाहती थी कि वह खिलाड़ी बने. इसलिए अपनी माँ का सपना पूरा करने के लिए, उन्होंने खुद को खेल के प्रति समर्पित कर दिया. उन्होंने वाटर पोलो से लेकर रग्बी और कुश्ती तक में हिस्सा लिया. कुछ दिन बाद वो जूनियर रग्बी की टीम का हिस्सा भी बन गए. वो काफी अच्छा खेल रहे थे, इसी बीच एक दिन खेल के मैदान पर उन्हें चोट लग गई. चोट भी वहां लगी, जहां उन्हें पहले से तक़लीफ थी, उनके घुटनों पर.
एक बार फिर वो खेल के मैदान से दूर हो गए. खेल के मैदान से दूर रहना पिस्टोरियस को रास नहीं आ रहा था. उन्हें तो अपनी मां का सपना पूरा करना था. खेल उनकी रग-रग में बस चुका था. फिर क्या कूद पड़े मैदान-ए-जंग में. उन्होंने अपने कोच से बात कर उन्हें मैदान में बुलाने की बात कही. लेकिन उनके कोच ने उन्हें मना कर दिया. वह खेलने की जिद्द करते रहे. उनके कोच ने देखा कि उनके अंदर खेलने की आग है, इसलिए वो भी मान गए. अब दिक्कत यह थी कि ऑस्कर रग्बी खेलने के लिए फिट नहीं थे. कोच ने सोचा कि पिस्टोरियस के लिए भागना मुश्किल है. इसलिए उन्होंने ऑस्कर के लिए स्पेशल मेटल ब्लेड वाले नकली पैर मंगवाए.
इसके बाद उन्होंने ऑस्कर को उनके साथ भागने के लिए कहा. ब्लेड लगते ही ऑस्कर भी धारदार हो गए. वह पहले से बहुत तेज दौड़ रहे थे. अब वो बाकि, खिलाड़ियों को भी पीछे छोड़ देते. उनके कोच फिटनेस के लिए कैंप में बुलाकर दौड़ाते थे. तब उन्हें एहसास हुआ कि रग्बी के बजाए पिस्टोरियस को रेसर बनने की ट्रेनिंग दी जाये, तो वह पैरालिम्पिक्स की टीम में जा सकते हैं. बस फिर क्या था उन्होंने ऑस्कर को ब्लेड के सहारे दौड़ाना शुरु किया और उन्हें चैंपियनशिप के लिए तराशना शुरु कर दिया.
कड़ी मेहनत के बाद साल 2004 में हुए पैरालिम्पिक्स खेलों में ऑस्कर पिस्टोरियस ने साउथ अफ्रीका की ओर से बतौर रेसर प्रतिभाग किया. इस चैंपियनशिप के फाइनल में ऑस्कर की जीत ने पुरी दूनिया को हैरान कर दिया. यही वक्त था जब ऑस्कर का नाम ‘ब्लेड रनर’ रख दिया, क्यों की वो ब्लेड के सहारे दौड़ते थे.
साल 2005 के पैरालिम्पिक्स वर्ल्ड कप में ऑस्कर ने कई गोल्ड मेडल जीता. साल 2007 में एक और चैंपियनशिप में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए, उन्होंने कई रिकॉर्ड भी तोड़ ड़ाले. पैरालिम्पिक्स खेलों में ऑस्कर ने 20 से अधिक गोल्ड जीते. साल 2012 में लंदन में हुए समर ओलिंपिक में भी उन्होंने हिस्सा लिया और 16वें स्थान पर रहे.
ऑस्कर पिस्टोरियस ने पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवा लिया. सब लोग हैरान थे. लगातार कई रेस जीतने के बाद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ़ तेज़ी से बढ़ता जा रहा था. लेकिन इसका नुकसान भी ऑस्कर को उढाना पड़ा. उनका विपक्षी ख़ेमा उनसे और जलने लगा. उन्होंने कई बार खेल कमेटी से ऑस्कर पिस्टोरियस पर बैन लगाने और उन्हें शार्प ब्लेड के बिना रेस के ट्रैक पर उतरने की बात कही. लोगों का कहना था कि ऑस्कर पिस्टोरियस ब्लेड के सहारे दौड़ते हैं, इसलिए उनका शरीर नहीं थकता.यही कारण है कि वह हर रेस जीत जाते हैं. बाद में ये सब हवाबाजी निकली तब तक ऑस्कर खेल की दुनिया में बड़ा नाम बन चुके थे.
साल 2013, दिन वेलेंटाइन. जब सारी दुनियां अपनी महबूबा से इश्क जता रही था. उस रात ऑस्कर ने अपनी गर्लफ्रेंड रीवा को अपनी लाईसेंसी पिस्टल से छलनी कर दिया. गर्लफ्रेंड कि उसी रात मौत तो गई!. पिस्टोरियस का अपने बचाव में कहना था कि वह रात में जब उठे तो उन्हें आभास हुआ कि दरवाज़े पर कोई है, जो उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए उन्होंने फायरिंग कर दी. गोली चलाने के बाद पता चला की दरवाज़े पर उनकी गर्लफ्रेंड रीवा थी.
6 महीने तक चले ट्रायल केस में कोर्ट ने ऑस्कर को अनजाने में गोली चलाने का दोषी माना. गैर इरादतन हत्या के मामले में साउथ अफ्रीका की कोर्ट ने पिस्टोरियस को 13 साल की सज़ा सुनाई. ऑस्कर अब जेल की सलाखों के पीछे अपनी जिंदगी बिता रहे है. उनके केस की सुनवाई जारी है. उम्मीद है कि उन्हें जल्द ही राहत मिलेगी.