नवरात्रि एक हिंदू पर्व है. नवरात्रि का अर्थ होता है ‘नौ रातें’. इन नौ रातों के दौरान, मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्र साल में दो बार आती है. इस बार जो आई है उसे चैत्र नवरात्रि के नाम से जाना जाता है. और इस नवरात्रि हफ्तें में हम आपको मां दुर्गा से जुड़ी कुछ रोचक कहानियां सुनाएंगे. आज की कहानी है मां मनसा देवी की.
तीन सिद्ध पीठों में से एक मनसा देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार में स्थित है. इस मंदिर को देवी मनसा का निवास स्थान माना जाता है, जो शक्ति का ही एक रूप है.
कहा जाता है कि मनसा देवी, भगवान शिव की मानस पुत्री थी. इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा. इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक हैं. इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है. कुछ ग्रंथों में लिखा है कि वासुकि नाग द्वारा बहन की इच्छा करने पर शिव नें उन्हें इसी कन्या का भेंट दिया और वासुकि इस कन्या के तेज को न सह सका और नागलोक में जाकर पोषण के लिये तपस्वी हलाहल को दे दिया. और इनकी रक्षा के लिये हलाहल नें अपना प्राण त्यागा दिया.
दुर्गम पहाड़ियों और पवित्र गंगा के किनारे स्थित मनसा देवी अपने हर भक्त की इच्छा को पूरा करती हैं. मनसा देवी मंदिर एक सिद्ध पीठ है. सिद्ध पीठ का अर्थ एक ऐसी जगह से है जहाँ भगवान की पूजा की जाती है और जहाँ भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है. हरिद्वार में स्थापित तीन सिद्ध पीठों में से ये एक है, दूसरे दो पीठों में चंडी देवी मंदिर और माया देवी मंदिर शामिल हैं.
यह मंदिर मां मनसा को समर्पित है. जिन्हें वासुकी नाग की बहन बताया गया है. मां मनसा शक्ति का ही एक रूप है. जो कश्यप ऋषि की पुत्री थी. कश्यप ऋषि के मन से उत्पन्न होने के कारण वे मनसा नाम से जानी गई. मां मनसा ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का अध्ययन किया और कृष्ण मंत्र प्राप्त किया, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है. इसके बाद देवी ने कई युगों तक पुष्कर में तप किया. तब भगवान कृष्ण ने उन्हें दर्शन देकर वरदान दिया की तुम्हारी पूजा तीनों लोकों में होगी.
सभी भक्त यहां पेड़ की शाखा पर एक पवित्र धागा बाँधते है. जब उनकी इच्छा पूरी हो जाती है तो पुनः आकर उसी धागे को शाखा से खोलते है. भक्त मॉ को खुश करने के लिए मंदिर में नारियल, प्रसाद मिठाई आदि भेंट करते हैं. यह मंदिर सिद्ध पीठ है जहां पूजा करने से माँ का आशीष प्राप्त होता है. नवरात्री के समय पर यहां भक्त भारी संख्या में आकर मां मनसा का आशीष लेकर अपना व्रत संपन्न करते है. देवी की पूजा गंगा दशहरा के दिन बंगाल में भी की जाती है. कहीं-कहीं कृष्णपक्ष पंचमी को भी देवी की पूजी की जाती हैं.
मंदिर तक पहुचने के लिए आपको कुल 786 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है. यहां यात्रियों की सुविधा के लिए रोप-वे भी बनाया गया है, जिसे “मनसा देवी उड़नखटोला” के नाम से जाना जाता है. यह रोप भक्तों को निचले स्टेशन से सीधे मनसा देवी मंदिर तक पहुंचाता है.