मथुरा की होली पूरी दुनिया में फेमस है. इसकी सबसे बड़ी वजह एक शक्स है, नाम है बाबूलाल पंडा. बाबूलाल फालेन गांव में रहते हैं और हर साल होलिका की दहकती आग के बीच से नंगे पैर निकलते हैं. जब बाबूलाल 43 साल के थे तो वे पंडा के रूप में पहली बार होलिका में निकले थे.
जिसके बाद से ये सिलसिला चलता रहा. बाबूलाल इस साल भी धधकती होलिका के बीच से निकले. बाबूलाल पंडा पांचवी बार ये करिश्मा दिखा रहे थे. बाबूलाल के पहले ये कारनामा उनके पिताजी स्व. इंद्रजीत पंडा करते थे. उन्होने 21 बार इस भूमिका को निभाया था.
आग में कूदने के लिए बाबूलाल को 40 दिन का व्रत रखना पडता है. बाबूलाल बताते हैं कि “हमारा परिवार कौशिक का वंशज है. यह वही परिवार है जिसे 500 साल पहले गांव में आए एक साधु ने आग से सुरक्षित रहने का वरदान दिया था. यही वजह है कि सिर्फ हमारे परिवार के पंडे ही इस परंपरा को निभाते हैं.”
बाबूलाल की माने तो यह गांव भक्त प्रहल्लाद से भी जुड़ा है. 500 साल पहले यहीं उनकी मूर्ति नरसिंह भगवान की प्रतिमा के साथ मिली थी. तभी से यहां होलिका दहन अन्य जगहों के मुकाबले ज्यादा जोर-शोर से किया जाता है. इस परंपरा में सिर्फ हमारे गांव के आसपास बसे 6 गांव भी हिस्सा लेते हैं.”
वहीं इस गांव के प्रधान जुगन चौधरी बताते हैं, “यहां होली पर हर घर में रंगाई-पुताई होती है. 40 दिन तक हर घर को सजाया जाता है, मेला लगता है. खासकर मंदिर के आसपास सबसे ज्यादा रौनक रहती है.
प्रधान जी बताते हैं कि पंडा का परिवार होलिका दहन के दौरान आग से निकलने का कारनामा करता है. उनकी सुरक्षा के लिए पूरा गांव प्रार्थना करता है, पूजा-भजन करता है. महिलाएं भगवान प्रहल्लाद को मनाने के लिए भजन गाती हैं. इस होली के लिए गांव के सभी घरों से एक-एक गोबर उपला आता है. होलिका उपले और घास-पूस लगाकर बनाई जाती है. इसकी चौड़ाई 15 मीटर और ऊंचाई 15 फीट होती है. इस अनोखी होली को देखने हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से इस गांव में आते हैं.