कविता / मुझ जैसा आदमी सिर छिपाए तो कहाँ?
कविता Cafe में आज पढ़िए व्लदीमिर मयकोव्स्की की रचना “मुझ जैसा आदमी सिर छिपाए तो कहाँ?” जिसे वरयाम सिंह ने अनुवाद किया है।हार की तरह भारी बज गए हैं चारमुझ जैसा आदमी सिर छिपाए तो कहाँ? कहाँ...
आखर
आकाश शुक्ला यूँ तो पेशे से पत्रकार हैं लेकिन आजकल साहित्य के गलियारों में पहचाने जाने लगे हैं जिसकी वजह है इनकी पहली किताब "आखर".इस किताब को लेकर हमने आकाश से बातचीत की पेश...
कविता- “जो तुम आ जाते एक बार”
कविता Cafe में आज पढ़िए महादेवी वर्मा की रचना "जो तुम आ जाते एक बार" जो तुम आ जाते एक बार कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार ...
चाय और कॉफ़ी में कौन बेहतर है, सुनिये इस कविता में…
चाय और कॉफ़ी में कौन बेहतर है, इसकी बहस भी अकसर सुनने को मिलती रहती है. आज चाय Vs कॉफ़ी पर एक कविता सुनिए. इस ख़ूबसूरत कविता को हुसैन हैदरी ने लिखा है.कश्मीर से कन्याकुमारी...
कविता : सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना
आज क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधु 'पाश' की पुण्यतिथि है. 9 सितंबर 1950 के दिन इस दुनिया में आए एक इंकलाबी पंजाबी कवि अवतार सिंह संधू उर्फ ‘पाश’ को खालिस्तानी उग्रवादियों ने 23 मार्च...
शहीद दिवस पर पेश है शहीद भगत सिंह की पसंदीदा कविताएं
7 दिसंबर 1928 को लाहौर में सांडर्स की हत्या और 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के बम फेंके जाने से पहले भारत की जनता को...
#WorldPoetryDay पर आपको 5 ऐसी कविताएं पढ़वाते हैं, जिन्हें पढ़कर आप मंत्रमुग्ध हो जाएंगे.
आज यानी 21 मार्च को विश्व कविता दिवस (#WorldPoetryDay) के तौर पर मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ने प्रति वर्ष 21 मार्च को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा...
कविता- परदेसी की माँ
माँ के गले नहीं उतर रहा पानी का एक घूँट घर में कल थी दिवाली जिससे आज दिवाला हो गया माँ भूखी रह गई घर-भर का निवाला हो गयाभूख की मारी दुनिया में परदेस बसे से भूखे को कहाँ मिले माँ...
सियासत पर कहे गए वो शेर जो कल भी जिंदा थे, आज भी जिंदा हैं और हमेशा जिंदा रहेंगे
देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जाएँगी लाशें ढूँडोगे तो इस शहर में क़ातिल न मिलेगा मलिकज़ादा मंज़ूर अहमददुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों बशीर बद्रकहां...
कविता: एक कली खिली थी अभी अभी
एक कली खिली थी अभी अभी .. एक सुबह हुई थी अभी अभी ...सूरज देखा था पहली बार.... मन में आस जगी थी अभी अभीइस रंग बिरंगी दुनिया को देखा था उसने पहली बार ....कुछ सपने प्यारे-प्यारे...